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Living Feminisms
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ज़ंजीरो को तोड़ कर

by जूही जैन सबला अगस्त
"आंख खुली जद शुभ दिन आयो घर-घर जाय सबने जगासू बाल- विवाह को बंद करवासू पोथी-पाटी हाथ थमासू झांसी-दुर्गा याद दिलासू सबला बन जीना सिखलासू औारत को उसकी पहचान करासू "
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मुझे मत मारो ! मैँ डायन नहीं हैं

by विशेष सवांददाता
" अठारहवीं शताब्दी के भारत में अनेक कृपरथओ के ज़रिए औरतों की खुले आम हत्या की जाती थी । उनमे सती के नाम पर औरत को जला देना और डायन कह कर पीट - पीट कर मार देना खास थी । ... सिर्फ शर्म से सिर झुकाने से काम नहीं चलेगा हर जागरूक स्त्री और पुरुष को राष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए । " आगे पढ़िए..
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झुग्गी बस्ती में सशर्त की गूंज नवसा बहनों के सुखद अनुभव

by सुहास कुमार सबला दिसम्बर
" पढ़ना- लिखना आने पर ही हम अपनी बात ठीक से कह सकते हैं और तभी लोग सुनते भी हैं । गलत चीज़ के लिए लड़ भी सकते हैं । घर में व बाहर पहले से ज़्यादा मान व इज़्ज़त मिलती हैं । ... पढ़ने-लिखने का सबसे ज़्यादा फायदा या हुआ कि मेरे सात के लोग , घरवाले और पड़ोसी अब मुझे कुछ समझने लगे हैं । लोग मेरी बात घ्यान से सुनते हैं । खुद मुझे लगता हैं कि मेरी समझदारी बढ़ गई हैं ।... " आगे पढ़िए...
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मंगल कामना सिर्फ पुरुष के लिए !

by रशिम स्वरुप जौहरी
"जीवन- मृत्यु ज़िंदगी की वास्तविकता हैं । जिसने जन्म लिया हैं वह मरेगा भी । जो औरतो सब सुहाग चिन्ह पहनती हैं , पति की लंबी उम्र के लिए व्रत - उपवास करती हैं उनके पति की मृत्यु क्या उनसे पहले कभी नहीं होती ? यह सब रिवाज़ औरत- मर्द में भेदभाव करते हैं । औरतों पर पाबंदी लगाते हैं कि वे अपनी मर्ज़ी से सज - संबर भी न सकें । औरतें यह कभी न सोचें कि मर्दो के मुकाबले उनका जीवन कम कीमत रखता हैं । " आगे पढ़िए...
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संकुचित नज़रिया छोड़े

by मुकुल लाल
" समानता और खोई प्रतिष्ठा पाने के लिए औरतों को अथमविश्वास जगाना होगा । अपने मनोबल को बढ़ाना होगा । इसके लिए पहल परिवार के भीतर से करनी होगी । हमे इस विशवास के साथ आगे बढ़ना हैं कि नारी - शोषण व अन्याय को आने वाली पीढ़ी एक बुरे सपने की तरह याद करेगी । " आगे पढ़िए...
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समाज पीड़ित लड़की को न्याय दिलाए

by इंदिरा मणीषा
"हमे अपनी भूमिका , समाज को अपनी भूमिका तय करनी होगी । ... किसी अन्य के बारे में कुछ कहने या करने से पहले सोचें कि ऐसा ही व्यवहार हमारे साथ या हमारी बहन , बेटी के साथ हो तो हम पर बीतेगी । " आगे पढ़िए...

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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