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कहानी न्याय के लिए लड़ाई की

by पुष्पा मसीह
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दिन भर डर कर जीती हूँ रोतों को सहमी रहती हूँ

by जूही जैन
"देश में गर बेटियां अपमानित ह नाशाद हैं दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद हैं?" आगे पढ़िए...
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समय आ गया हैं

by वीणा शिवपुरी
"समय आ गया हैं एक आंदोलन पुकारता हैं तुम्हे चाहता हैं तुम्हारी ताकत, तुम्हारी मदद तुम्हारी आवाज़ , तुम्हारा सहारा ताकि हाथ थाम सकें बच्चियों के आओ उन्हे बचाएं, उन्हे जिलाए, उन्हे पढ़ाए, उन्हे दूलराएं समय आ गया हैं ।" आगे पढ़िए...
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आखिर कब तक !

by सुहास कुमार
"गांधीजी ने यंग डांडिया पत्रिका (अक्टूबर १९२९) में कहा था - हिन्दू संस्कृति ने पतनी को पति के बहुत आधीन रहने और पति में पूर्ण रूप से खो जाने पर ज़ोर देखर बहुत गलती की हैं । फलस्वरूप पति कभी-कभी अपने अधिकार का अर्जन और प्रयोग सीमा से बाहर करता हैं । उसका व्यवहार करता के निम्नतम स्तर तक गिर जाता हैं । इसी तरह की ज़्यादतियों का इलाज़, कानून के जरिये नहीं, स्त्रियों की सही शिक्षा से होगा । ऐसे पतियों के अमानवीय व्यवहार के विरोध में जनमत तैयार करना होगा ।" आगे पढ़िए...
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सांप्रदायिक दंगों का महिलओं पर असर

by सुश्री अन्नु समता प्राम सेवा संस्थान
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रुकमां की लड़ाई

by शारदा जैन
"रुकमां का एक ही सपना है- बड़ी होकर वह अपने देश नेपाल जाएगी, वहीं बेटियों को बेचने वाले बापों और धनसिंह जैसे लड़कियों के दलालों के खिलाफ काम करेगि। तभी उसकी लड़ाई पूरी होगी" आगे पढ़िए...

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
Development and Maintenance: Zenith Webtech

About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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