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रजोनिवृत्ति: मेरी सोच, मेरा अनुभव

चौपाल
by वीणा शिवपुरी
इस लेख में वीणा शिवपुरी अपने रजोनिवृत्ति के अनुभव को बांटते हुए इस बात पर ज़ोर देती हैं कि कैसे रजोनिवृत्ति के प्रति स्वस्थ्य व सकारात्मक सोच रखकर उस कठिन दौर से निपटा जा सकता है।
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रजोनिवृत्ति कोई हौवा तो नहीं

चौपाल
by जुही जैन
उम्र ढलने यानि लगभग 45 से 54 वर्ष की आयु के बीच रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म बंद होना) औरतों के शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इस लेख में रजोनिवृत्ति से जुड़े विभिन्न लक्षणों के बारे में जानकारी उपलब्ध है।
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जनसंख्या नियंत्रण: कितनी आवश्यकता, कितनी राजनीति

चौपाल
by संगीता मौर्य व ईशा सारस्वत
भारत ने 'जनसँख्या और विकास के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन' 1994 में ये वादा किया था कि जनसँख्या नियंत्रण दृष्टिकोण के बजाय गर्भ निरोधन में पुरुषों की ज़िम्मेदारियों पर और किशोरों की ख़ास ज़रूरतों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। राष्ट्रीय जनसँख्या नीति 2000 के माध्यम से भी सरकार ने एक भयमुक्त, लक्ष्यमुक्त प्रक्रिया को अपनाने की बात की थी। परन्तु इतने सालों बाद, आज भी सरकार के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया जिसका प्रमाण है अखबारों में लगातार जगह बनाने वाली असुरक्षित महिला नसबंदी की घटनाएं।
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सरकारी डिस्पेंसरी की कमी

चौपाल
by दुनू रॉय
दिल्ली में 2011 तक 1019 सरकारी डिस्पेंसरी खोली गईं जबकि महायोजना के मानकों की मुताबिक उस वक्त 1675 डिस्पेंसरी होनी चाहिए थी। और तो और, दिल्ली के 2011 तक की महायोजना के अनुसार 7500 की आबादी पर एक डिस्पेंसरी का प्रावधान था जिसे बदलकर 2021 तक की महायोजना में 10000 लोगों की आबादी पर एक डिस्पेंसरी खोलने का प्रावधान किया गया। इस समय दिल्ली सरकार की कुल आमदनी में से मात्र 0.6 प्रतिशत स्वास्थय सेवाओं पर खर्च हो रहा है। प्रस्तुत लेख इन आंकड़ों के माध्यम से दिल्ली में स्वास्थय सेवाओं में बेहतरी की गुहार लगाता है।
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किशोरी गर्भावस्था- कुछ अहम मुद्दे

चौपाल
by जुही जैन
किशोरावस्था में गर्भधारण हमारे समाज की एक बहुत जटिल समस्या है। भारत की सामजिक परिवेश में यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हम किशोर गर्भावस्था से जुडी कुछ ज़रूरी जानकारी को ध्यानपूर्वक समझें।
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सुभाषिनी मिस्त्री का अस्पताल

चौपाल
by जुही जैन
पढ़िए एक ऐसी जीवट महिला की कहानी जिन्होंने अपने जीवन में एक सपना देखा और उसे जी जान लगाकर पूरा भी किय। पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव में रहने वाली सुभाषिनी ने बर्तन मांजने, साफ़-सफाई, खेतों में खुदाई, बीज रोपने, खर-पतवार उखाड़ने, सब्ज़ी बेचने जैसे काम करके पैसे जोड़े और अपने गाँव में एक अस्पताल खोलने के सपने को साकार किया।

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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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