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लड़कियां

कहानी
by मृणाल पांडे
पढ़िए मृणाल पाण्डे की लिखी यह कहानी- लड़कियां जिसके ज़रिये वे हमारे पाखंड समाज की सच्चाई को बड़ी सहजता से सामने लाती हैं। एक ऐसा समाज जहाँ एक ओर लड़कियों को देवी, कन्याकुमारी मानकर उन्हें पूजा जाता है तो दूसरी ओर लड़कों की तुलना में उन्हें निम्नतर दर्जा देकर उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
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मर्दों का इससे क्या लेना देना ?

by राहुल रॉय
फिल्म निर्माता व कार्यकर्ता राहुल रॉय इस लेख में दिल्ली में घटित निर्भया बलात्कार व हत्या काण्ड के बाद इण्डिया गेट में चल रहे विरोध प्रदर्शन के सन्दर्भ में मर्दानगी और पितृसत्ता की गहरी जड़ों के बारे में लिखते हुए कहते हैं की "मर्दानगी वह धरणात्मक आधार है जो मर्दों के लिए दंड मुक्ति को जायज़ बनाता है और व्यवहार में भी उतारता है।" आगे पढ़िए...
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मैं अपने जीवन के लिए लड़ी और जीती भी

आपबीती
by सुहेला अब्दुलाली
सुहेला भारत में जन्मी एक लेखिका व पत्रकार हैं जो फिलहाल अमेरिका में रहती हैं। सन 1980 में 17 साल की उम्र में वे एक अत्यंत हिंसक सामूहिक बलात्कार हादसे की शिकार हुईं थीं जिसके तीन साल बाद उन्होंने भारतीय पत्रिका, मानुषी में अपने अनुभव के बारे में लिखा था। प्रस्तुत है उनके उसी लेख का हिंदी अनुवाद।
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बलात्कार के बाद का सफ़र

by निशा सूज़न
इस लेख में यदि किसी के साथ बलात्कार घटे और वे इन्साफ चाहतीं हों तो क्या करना आवश्यक है इसके बारे में जानकारी मुहैया कराई गई है। इसमें न्यायिक परीक्षण, 'दो उंगली जांच', प्रथम सूचना रिपोर्ट, बयान आदि जैसे अलग अलग पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
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मथुरा से भंवरी तक

by लक्ष्मी मूर्ती
यह लेख यौन उत्पीड़न, बलात्कार और आपराधिक कानून में संशोधन की मांग को लेके महिला संगठनों के संघर्ष पर आधारित है। इस लेख में मथुरा के साथ महाराष्ट्र पुलिस हिरासत में सामूहिक बलात्कार, भंवरी देवी का ऊँची जाती के पांच पुरुषों द्वारा बलात्कार जैसे घटनाओं का उल्लेख है जो कानून में कुछ हद तक बदलाव लाने में मील के पत्थर साबित हुए।
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हिंसा व महिला सशक्तिकरण: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

by विभूति पटेल
इस लेख में भारतीय महिला आंदोलन का हिंसा के विरुद्ध जागरूकता एवं असहनशीलता फ़ैलाने व क़ानून में सुधार लाने के निरंतर प्रयास की एक ऐतिहासिक रूपरेखा प्रस्तुत है। 1970 के दशक में घटित मथुरा बलात्कार कांड पर सर्वोच्च न्यायलय के प्रतिकूल फैसले ने देश में बलात्कार-विरोधी अभियान को जन्म दिया। फिर दिसंबर 2012 के दिल्ली बलात्कार मामले ने जेंडर की सामाजिक रचना की बहस को और अधिक मुखर बनाया जिसका एक सकारात्मक फल था जस्टिस वर्मा समिति के सशक्त सुझाव पर बना आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2013।

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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