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सबके लिए भोजन: क्या हम ऐसा कर सकते हैं?
आमने- सामने
by वी. रुकमणि राव
प्रस्तुत लेख 'खाद्य सुरक्षा अभियान' पर आधारित है और इससे जुड़े विभिन्न आयाम जैसे आवश्यकता, साध्यता, आदि पर चर्चा करता है। यह अभियान भूख को जड़ से उखाड़ फेंकने और सबके लिए भोजन सुनिश्चित करने के दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
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अंतिम निषेध का सामना: मासिक धर्म
आमने- सामने
by क्रिस्टोफर डब्ल्यू विलियम्स
इस लेख में मासिक धर्म से जुड़े पूर्वाग्रहों के विषम चक्र को तोड़ने की ज़रुरत; सुरक्षित, स्वच्छ और निजी मासिकधर्म के मुद्दे को कटिबद्ध वकालत, वित्तीय सहायता और नीतियों की मदद से प्राथमिकता मिलने की ज़रुरत पर प्रकाश डाला गया है।
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एक 'स्थगित' ख्वाब का आखिर होता क्या है?
संवाद
by अरविंद नारायण
दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 (जो समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देती है) की वैधता को बरक़रार रखने का फैसला कैसे समानता के अधिकार, गरिमा व गोपनीयता के अधिकार और भेदभाव मुक्त होने के अधिकार का सरासर उल्लंघन करता है इसका स्पष्टीकरण करता है यह संवाद।
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यौनकर्मियों के लिए न्याय: कहाँ?
संवाद
by आरती पाई/ मीणा सरस्वती सेषु
भारत में औरतों के लिए न्याय तक पहुँच पाना अनेक सामजिक अवरोधकों द्वारा सीमित होती है। इस सन्दर्भ में 'नैतिक' नजरिया तथा यौन कर्म से जुड़े कलंक के चलते यौन कर्मी महिलाओं की परिस्थिति और भी बदतर है और वे अक्सर भेदभाव व अन्याय की शिकार होती हैं।
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एकल हैं, अकेली नहीं!
संवाद
by पारूल चौधरी
विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, 'छोड़ी गई', घर से निकाली गई 'एकल महिलाएं'- एक ऐसा वर्ग गठित करती हैं जो निरंतर भेदभाव और अन्याय का शिकार रहा हैं। पढ़िए ऐसी महिलाओं की न्याय व सम्मान के लिए संघर्ष की गाथा।
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एक 'व्यवस्थित' पागलपन
आपबीती
by रेशमा वलिअप्पन
22 वर्ष की उम्र में मानसिक रोग की शिकार हुई रेशमा वलिअप्पन अपने कठिन अनुभवों को बांटते हुए समाज में मानसिक रोग से जुड़े 'स्टिग्मा' पर प्रकाश डालती हैं।
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