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हमारी बात

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" घर - आंगन से जो गैर-बराबरी शुरू होती हैं, वह सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में और ज़्यादा होती जाती हैं । इसे ख़त्म या काम करने का काम औरतों को ही करना होगा । जब तक औरते अबला बनी पुरुष के सहारे की तलाश में रहेगी , यह गैर - बराबरी ख़त्म नहीं होगी । सबला का मतलब सिर्फ शारीरिक बल से नहीं हैं । ज्ञान का बल और पढ़ाई- लिखाई का बल भी कमज़ोर इंसान को सबल बनाता हैं । " आगे पढ़िए...
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क्यों मेँ ही कहलाती बांझिन

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" जिस स्त्री के बच्चा पैदा नहीं होता या लगातार कई लड़कियां पैदा होती हैं, लड़का नहीं पैदा होता तो दोष उसी का माना जाता हैं। घर के लोग, पड़ोस के लोग शिकवे , तानो के मारे उसका जीना दूभर कर देते हैं । ... बांझपन के लिए सिर्फ स्त्री को दोषी ठहरना नासमझी और नाइंसाफी हैं । बांझिन शब्द प्राय: एक कलंक और लांछन की तरह इस्तेमाल किया जाता हैं । ... इसमें किसी को भी दोष देना गलत हैं । " आगे पढ़िए...
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ताई की बेबसी

by विमला गोयल
" बेटियों के बारे में उनका कहना था , "अरे , लड़कियों का क्या, वे अपनी ससुराल में जाकर खा - पहन लेंगी । " आगे पढ़िए...
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'समुदाय' : समस्तीपुर का शिक्षा शिविर

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"हर दिन शाम को दिन भर के कार्यक्रम का मूल्यांकन किया जाता था । शिविर की गतिविधियों की आलोचना , समस्याए और उनके समाधान पर चर्च की जाती थी । स्त्रियों ने इन सबमे बड़े खुले दंग से भाग लिया । जिन समूहों ने ठीक दंग से स्वास्थ्य कार्यक्रम को समझ लिया था समुदाय की ओर से उन्हें दवाओं का एक किट भेंट किया गया । शिविर आयोजकों ने इस बात के लिए विशेष ख़ुशी जाहिर की कि बिना पढ़ी - लिखी स्त्रियां भी स्वास्थ्य कार्यकर्ती का काम कर सकती हैं और पिछड़े इलाकों में भी कार्यक्रम को कारगर बनाया जा सकता हैं । आगे पढ़िए...
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जच्चाओं की ऊंची मृत्यु - दर

by डाक्टर पेंडसे द्वारा उदयपुर के आर. एन. टी. मेडिकल कालिज में किए एक अध्ययन की रपट पर आधारित
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परिवार नियोजन और स्त्रिया

by साभार - जंजीरों को तोड़कर किशोर भारती
" परिवार योजना की असफलता का कारण गरीबी और अशिक्षा ही नहीं हैं । इसे कारगर बनाते का समूचा तरीका ही गलत हैं । स्त्रिया केंद्र बिंदु तो हैं, पर उन्हें किसी भी स्तर पर साथ लेकर चलने का कार्यक्रम नहीं बनाया जाता । उनका स्वास्थ्य और सुरक्षा सबसे आखिर में जाती हैं, उनका जो फैसला सबसे पहले होना चाहिए , उसका अधिकार उन्हें सबसे बाद में मिलता हैं और कई बार मिलता भी नहीं । " आगे पढ़िए ...

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
Development and Maintenance: Zenith Webtech

About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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