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न्याय के लिए "उमड़ते सौ करोड़"

अभियान
by कमला भसीन
2012 में दुनिया के अलग-अलग कोनों में महिला हिंसा के खिलाफ चल रहे संघर्षों को और मज़बूत व गतिशील बनाने के लिए शुरू हुआ एक वैश्विक अभियान है 'उमड़ते सौ करोड़'। इसके अंतर्गत जगह- जगह न्याय की अवधारणा पर मंथन व वाद-विवाद हुए। प्रतिकारात्मक न्याय बनाम परिवर्तनकारी न्याय- इस पर भी चर्चा हुई।
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हमारी बात- न्याय आखिर है क्या?

हम सबला (जनवरी-जून 2014)
by जुही जैन
प्रस्तुत है हम सबला के जनवरी-जून 2014 के अंक की भूमिका। इस अंक का बिषय है 'न्याय के आयाम'।
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न्याय का अन्याय: शालीशी अदालतें

by जयदीप मजूमदार
इस लेख में पश्चिम बंगाल के अवैध "शालीशी" अदालतों के देहशतगेज़ी की भीषण छवि प्रस्तुत की गई है। लेख में विभिन्न घटनाओं का वर्णन दिया गया है जिसमें ये अदालतें अपनी मनमर्ज़ी से फैसला लेती हैं। राज्य के भीतरी ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर काम कर रहीं ये अदालतें मृत्युदंड की सजा तक देती आई हैं। और तो और इन अदालतों द्वारा स्त्रियों के सर मुंडवाने, उन्हें निवस्त्र घूमाने, उनका सामूहिक बलात्कार किये जाने जैसी कड़ी सज़ाएं सामान्य है।
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प्रतिगामी राज्य

by ऋतू मेनन
इस लेख में वेंडी डोनिजर की पुस्तक "द हिन्दुस्: एन ऑलटरनॅटिवे हिस्ट्री" की बाजार में बिक्री पर रोक को एक उदाहरण के रूप में पेश करते हुए भारतीय दंड संहिता की 'सब लोगों की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखने' के विचार से बनाई गई धारा '153 अ' व '295 अ' की अस्पष्टता पर टिप्पणी की गई है। सभी नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने हेतु इन कानूनों में सुधार अनिवार्य है।
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स्कूूलों में दलित- आदिवासी बच्चों का सच

by विमला रामचंद्रन/ तारामणी नाओरेम
इस लेख में प्रस्तुत है छः राज्यों (आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश व राजस्थान) के स्कूलों में गुणात्मक शोध अध्ययण के ज़रिये किये गए स्कूली अलगाव और शिरकत के निरिक्षण के निष्कर्ष।
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पुरुषों के लिए न्याय: मर्दानगी की नई व्याख्या

by हर्ष मंदर
जेंडर समानता के द्वारा दुनिया न केवल महिलाओं के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक होगी अपितु इन सबके साथ-साथ दुनिया अधिक दयालु, कम हिंसक तथा पुरुषों के लिए भी कम दबावपूर्ण बनेगी क्योंकि पितृसत्ता औरत व मर्द दोनों का दुश्मन है। अतः इस लेख में "मर्दानगी" को एक नए ढंग से परिभाषित करने की ज़रुरत पर ज़ोर दिया गया है।

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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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