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फैमिली लॉ (भाग- 1 एवं 2)

पुस्तक परिचय
by जुही जैन
प्रस्तुत है फ्लेविया एग्निस की किताब 'फैमिली लॉ' के दोनों भागों की समीक्षा। भाग-1 का शीर्षक है 'फैमिली लॉज़ एंड कोंस्टीटूशनल क्लेम्स' , जबकि भाग-2 का शीर्षक है 'मैरिज, डाइवोर्स एंड मैट्रिमोनियल लिटिगेशन'। इन दोनों पुस्तकों का प्रमुख विषय है वैवाहिक न्यायशास्त्र जिसका विश्लेषण करते हुए लेखिका ने पारिवारिक कानून और महिलाओं के अधिकारों की समीक्षा की है।
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घरेलू हिंसा सुरक्षा कानून: एक विश्लेषण

by लॉयर्स कलेक्टिव विमेन राइट्स इनिशिएटिव
इस लेख में "घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून 2005" का मूल्यांकन प्रस्तुत है। लॉयर्स कलेक्टिव ने विभिन्न राज्यों के बजट आबंटन, मजिस्ट्रेट के आदेशों, उच्च-न्यायालयों के फैसलों, आधारभूत सुविधाओं तथा कानून के तहत चिन्हित मुख्य पणधारियों के साक्षात्कार के विश्लेषण के ज़रिए इस कानून के कार्यान्वयन की समीक्षा की है।
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आपबीती

by अज्ञात
इस लेख में एकदा घरेलु हिंसा का सामना कर रही दो महिलाओं ने अपने अनुभवों का वर्णन किया है। साथ ही किस प्रकार उन्होंने आत्मविश्वास तथा उपलब्ध कानूनों एवं अधिकारों के ज़रिये हिंसा के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी, इस बात पर भी रोशनी डाली गई है।
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भ्रांतियों के घेरे में मुसलमान महिलाओं का हक़

by फ़्लेविया एग्निस
इस लेख में "शरियत कानून में औरतों का कोई हक़ नहीं होता" जैसे आम धारना और पूर्वाग्रहों को निराधार साबित किया गया है। मुसलमान महिलाओं के अधिकार से जुड़े मामलों में अदालत द्वारा पारित किए गए कई फैसलों को उदाहरण स्वरुप पेश करते हुए लेखिका यह तर्क देती हैं कि इस्लामी कानून में हिन्दू अथवा अंग्रेजी कानूनी व्यवस्था के मुकाबले महिलाओं के लिए बेहतर सुरक्षा प्रावधान निहित हैं।
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महिलाओं के उत्तराधिकार का हक़

by मधु किशवर व रुथ वनिता
"हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956" के पास होने के बाद महिलाओं को माता-पिता की जायदाद में आसमान अधिकार मिले पर वे भी सिर्फ काग़ज़ तक सीमित रहे। आज भी देश की अधिकांश महिलाओं को पैतृक संपत्ति से वंचित रखा जा रहा है। इस लेख में कुछ ऐसी बातों पर रोशनी डाली गई है जिनके कारण औरतें उत्तराधिकार हकों को पाने से महरूम रही हैं।
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राष्ट्रीय घरेलू कामगार नीति: एक समीक्षा

संवाद
by चैताली हालदार
इस लेख में अप्रैल 2010 में तैयार की गई "राष्ट्रीय घरेलू कामगार ड्राफ़्ट नीति" की समीक्षा प्रस्तुत है जिसमें इस नीति का उद्देश्य, इसके कार्यान्वयन की व्यावहारिकता आदि जैसे मुद्दों पर आलोचना की गई है।

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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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