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एक 'स्थगित' ख्वाब का आखिर होता क्या है?
संवाद
by अरविंद नारायण
दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 (जो समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देती है) की वैधता को बरक़रार रखने का फैसला कैसे समानता के अधिकार, गरिमा व गोपनीयता के अधिकार और भेदभाव मुक्त होने के अधिकार का सरासर उल्लंघन करता है इसका स्पष्टीकरण करता है यह संवाद।
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यौनकर्मियों के लिए न्याय: कहाँ?
संवाद
by आरती पाई/ मीणा सरस्वती सेषु
भारत में औरतों के लिए न्याय तक पहुँच पाना अनेक सामजिक अवरोधकों द्वारा सीमित होती है। इस सन्दर्भ में 'नैतिक' नजरिया तथा यौन कर्म से जुड़े कलंक के चलते यौन कर्मी महिलाओं की परिस्थिति और भी बदतर है और वे अक्सर भेदभाव व अन्याय की शिकार होती हैं।
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एकल हैं, अकेली नहीं!
संवाद
by पारूल चौधरी
विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, 'छोड़ी गई', घर से निकाली गई 'एकल महिलाएं'- एक ऐसा वर्ग गठित करती हैं जो निरंतर भेदभाव और अन्याय का शिकार रहा हैं। पढ़िए ऐसी महिलाओं की न्याय व सम्मान के लिए संघर्ष की गाथा।
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एक 'व्यवस्थित' पागलपन
आपबीती
by रेशमा वलिअप्पन
22 वर्ष की उम्र में मानसिक रोग की शिकार हुई रेशमा वलिअप्पन अपने कठिन अनुभवों को बांटते हुए समाज में मानसिक रोग से जुड़े 'स्टिग्मा' पर प्रकाश डालती हैं।
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रूपसी मन्ना
कहानी
by महाश्वेता देवी
पढ़िए हिंदी व बांग्ला साहित्य जगत की मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी की लिखी एक रहस्यमय कहानी- 'रूपसी मन्ना'। जानिए कम उम्र में ब्याही गयी रूपसी के ज़िन्दगी में कैसे अप्रत्याशित मोड़ आते रहे और कैसे अंत में वह सभी मुश्किलों से उभरी।
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न्याय का आह्वान
फिल्म समीक्षा
by जुही जैन
प्रस्तुत है दीपा धनराज द्वारा निर्देशित तमिल फिल्म 'इन्वोकिंग जस्टिस' की समीक्षा।
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