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महिला अधिकार: न्यायिक संवेदनशीलता के प्रश्न

by सुनीता ठाकुर
"...हमारा न्यायतंत्र आज तक सबूतों और तर्कों की जिस भाषा को अपनाता रहा है, वास्तव में पारिवारिक मामलों में वह किसी भी तरह तर्कसंगत और उपयोगी साबित नहीं हो सकती।" इस लेख में लेखिका ने 'न्याय प्रमाणं स्यात्' कथन की सार्वभौमिकता पर सवाल उठाये हैं।
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हमारा शरीर हमारा हक़

आमने-सामने
by गौतम भान
यह लेख जैविक लिंग से अलग होकर लोगों को अपनी लैंगिक पहचान चुनने की आज़ादी के अधिकार के पक्ष में लिखा गया है। इस लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि खुद के आलावा कोई भी अन्य व्यक्ति या संस्थान विशेषकर कानून या चिकित्सा शास्त्र को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि किसी व्यक्ति की लैंगिक पहचान क्या है। नाही इस बात का उस व्यक्ति के गुणसूत्रों, हारमोन और शारीरिक बनावट से कोई लेना-देना है।
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किराए पर कोख

आमने-सामने
by आरती धर
इस लेख में प्रस्तावित 'सहायक प्रजनन नीति नियंत्रण अधिनियम 2010' को पारित कर भारत में व्यावसायिक सरोगेसी को नियंत्रित करने की ज़रुरत पर ज़ोर दिया गया है।
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सरोगेसी: व्यावसायिक या निस्वार्थ

by मोहन राव
इस लेख में भारत में व्यावसायिक सरोगेसी पर नियंत्रण की जगह प्रतिबन्ध लगाने की ज़रुरत के पक्ष में दलीलें पेश की गई हैं। इस लेख के माध्यम से इस बात को उजागर करने की कोशिश की गई है कि व्यावसायिक सरोगेसी यौनिक और प्रजनन दासता को बढ़ावा देती है।
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जायज़ या नाजायज़

आमने-सामने
by फ्लेविया एग्निस
इस लेख में एन.डी. तिवारी बनाम रोहित शेखर के पैतृत्व मुक़दमा के फैसले को उदाहरणार्थ प्रस्तुत करते हुए लेखिका 'भारतीय प्रमाण कानून 1872' की धारा 112 में निहित वैधता की "धारणा" के निरर्थकता को उजागर करती हैं।
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उदाहरणार्थ प्रस्तुत करना

आमने-सामने
by फ्लेविया एग्निस
इस लेख में एन.डी. तिवारी बनाम रोहित शेखर के पैतृत्व मुक़दमा के फैसले को उदाहरणार्थ प्रस्तुत करते हुए लेखिका 'भारतीय प्रमाण कानून 1872 की धारा 112 में निहित वैधता की "धारणा" के निरर्थकता को उजागर करती हैं।

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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