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अच्छी औरत : बुरी औरत

by वीणा शिवपुरी
" समाज की पितृसत्तात्मक बिसात में औरत एक मोहरा हैं । वह भी सबसे छोटा । उसकी चाल सिर्फ एक घर की है । अगर उसने उछल कर लम्बी चाल चलनी चाही तो उसे रोखने चाहिए , तभी खेल चलेगा । समाज और परिवार में अगर औारत ने मेहनत करने, त्याग करने या दुःख सहने से इनकार कर दिया तो पुरषों का राज नहीं गिर जाएगा ? बस इसलिए बनाई है अच्छी और बुरी औरत की छवि । .... लेखिन सवाल यह है कि अच्छी और बुरी का फैसला हमारे हाथ में क्यों नहीं ? " आगे पढ़िए...
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हमारी बात

by ज्ञानेंद्र प्रसाद जैन
"औरतों एक दुसरे के साथ ज़्यादती करती हैं इसे नकारा नहीं जा सकता । लेखिन ऐसा क्यों होता हैं ? यह सवाल हम औरतों के लिए चुनौती हैं । जो बहू जवानी में दुर्व्यवहार सहती हैं सास बन कर कठोरता क्यों करती हैं ? क्या उसे वे दिन याद नहीं रहते जब वह बहू बन कर आई थी और सास- ननद का प्यार पाने को भूखी रहती थी? ... इसका एक जवाब यह हो सकता हैं कि समय आने पर वह भी अपनी सत्ता जमा कर प्रति दुर्व्यवहार का बदला लेना चाहती हैं .... । " आगे पढ़िए...
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जनसंख्या, पयाॅवरण व विकास पर एक नारीवादी नज़रिया

by कमला भसीन
" विकास पयाॅवरण और जनसंख्या के संबंधों को समजना ज़रूरी हैं , और यह देखना भी ज़रूरी हैं कि इन सब बातों का गरीबों और औरतो पर क्या असर पड़ रहा हैं । ... और गरीबों से भी बड़ा दोषी कौन? औरतें गरीब औरतों को सबसे ज़्यादा हिकारत , घृणा कि नज़र से देखा जा रहा हैं । ... सारे परिवार नियोजन कार्यक्रम गरीब औरतों को शिकार बनाए हुए हैं, उन्ही पर सब का वार हैं । " आगे पढ़िए..
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औरतें अपने हकों के लिए जूझ रही हैं

by सुहास कुमार
"आज देश में जो नारी जागरूकता , नारी समस्याओ व नारी दृष्टिकोण के प्रति अधिक जागरूकता दिखाई देती हैं उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हैं । १९ वीं सदी के शुरू होने तक समाज में हुआछूत , सती-प्रथा , पर्दा-प्रथा , बाल-विवाह , स्त्रियों की शिक्षा व विधवा पूनविॅवाह पर रोक आदि बुराइया गहरी जड़ पकड़ चुकी थी । ... औरतो के सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई जाने लगी । " आगे पढ़िए...
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'सबला' के पुरष पाठकों के नाम एक पत्र

by कमला भसीन
"अगर हो सके तो हम सब मिल कर एक ऐसे समाज की रचना कर सकें जहाँ स्त्री-पुरष दोनों इज़्ज़त से जी सकें, पनप सकें , जहां इंसाफ हो ।" आगे पढ़िए...
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पुरष पाठकों के लिये विशेष कुछ बुनियादी सवाल

by कमला भसीन
"हमारा विशवास हैं की नारीवाद हमें एक स्पष्ट दिशा दे सकता हैं। नारीवाद खोज की इस सुरंग के अंत में हमें रौशनी नज़र आती हैं ।" आगे पढ़िए...

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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