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बदलाव से शुरुआत घर से करे

by वीणा शिवपुरी
" हम जो बोलते हैं , जो सोचते हैं वह निर्भर करता हैं बचपन से दी गई हमारी शिक्षा पर । हमारी पहली शिक्षा शुरू होती हैं मां की गोदी से, घर के माहौल से । अगर गलत शिक्षा को सही में बदलता हैं तो शुरुआत घर से ही करनी हागी । ... ऐसा नहीं हैं कि घर के बाहर का वातावरण असर नहीं डालता । " आगे पढ़िए
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औरतों की स्थिति में बदलाव कहा !

by सुहास कुमार
" नारीवादी सोच में जो बराबरी की मांग की जा रही हैं वह " स्थिति " संबंधित हैं । इसका मानना हैं कि स्थिति में सुधार आने से दशा में सुधार ज़रूर आएगा । जब कि दशा में सुधार आने से ज़रूरी नहीं हैं कि स्थिति में सुधार आए । स्थिति में बदलाव का मुर्द्द बहुत गहरा हैं । सोच व व्यवहार में बदलाव से जुड़ा हैं । " आगे पढ़िए... बदलाव आए भी तो कैसे । हमारा लक्ष्य ही केवल दशा सुधारना रहा हैं । सच्चाई तो यह हैं कि केवल दशा सुधरने भर से स्थिति में फर्क नहीं आ जाता हैं । स्थिति में बदलाव आने के लिए वयक्तिगत व सामाजिक सोच में बदलाव आना ज़रूरी हैं । " आगे पढ़िए...
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अनदेखी मेहनत का हवन कुंड

by 'समता' कला जथा
आँखें हैं तो आधी रात बंद होने के लिए बंद होंठ लगते हैं मौन जख्म लिए हुए चले थे जहां वाही खड़े हैं हज़ारों खदम चलने के बाद अनदेखी मेहनत के हवन - कुंड में उनके जल रहे हैं दिन - रात
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अख्तर के अब्बा कौन?

by अनीता रामफल
"जैसे जब कोई नर्स कहता हैं तो हमेशा महिला की छीप सामने आती हैं ...ख़ैर यह तो हम जानते हैं कि इंजीनियरों में महिलाओं कि तादाद कम हैं पर ऐसा क्यों हैं? क्या यह इसलिए कि महिलाओं में इंजिनियर बनने कि 'क्षमता' नहीं हैं ? पर यह 'क्षमता' होती क्या हैं और कहा से जाती हैं? क्योंकि अवसर और अनुकूल माहौल मिलने पर महिलाए इंजिनियर भी बनती हैं , वैज्ञानिक , वकील या डॉक्टर भी! " आगे पढ़िए...
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औरत औरत का सहारा बने

by सुहास कुमार
मर्दो से भी दी पग आगे बढ़ जाती हैं सच हैं औरत ही औरत को तड़पाती हैं सास बन ज्यों बहू से बदला लेती हैं जितने जुल्म सहे दुगुने देती हैं बेटियों को भोझ मान पालती पीढ़ी दर पीढ़ी यही सिलसिला चलाती । आगे पढ़िए...
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क्या यह बटवारा सही है ?

by सुहास कुमार
"हमारे सामाजिक ढांचे में स्त्री - पुरुष की भूमिकाए व काम के क्षेत्र तय से रहते है । स्त्री व पुरुष से कुछ खास गुणों व उन पर अाधारित व्यवहार की उम्मीद की जाती है । ... " आगे पढ़िए...

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Development and Maintenance: Zenith Webtech

About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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