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आख़िरकार अभिव्यक्ति का अधिकार है किसका ?

संवाद
by मृणाल पांडे
इस लेख में हिंसात्मक यौनिक दमन और अश्लील साहित्य (पोर्नोग्राफी) के आपसी सम्बन्ध पर प्रकाश डाला गया है क्यूंकि हर उम्र की महिला व बच्चों के साथ होने वाली घरेलु हिंसा और अन्य प्रकार के अमानवीय व्यवहार को सीखने और जायज़ ठहराने में अश्लील साहित्य का इस्तेमाल एक बहुत बड़ा कारक है।
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पितृसत्तात्मक नियंत्रण रेखा का विरोध

by कविता कृष्णन
निर्भया बलात्कार कांड के बाद तेज़ी से छिड़ी यौन हिंसा के विरुद्ध जारी जन आंदोलन पर कुछ शंकालु लोगों ने तोहमत लगाई की इससे जुड़े विरोधी दरअसल एक उत्तेजित भीड़ के खतरनाक जमावड़े हैं। औरतों व लड़कियों का अपने घरों से बाहर आकर बुलंद इरादों के साथ इस आंदोलन में शामिल होना पितृसत्ता द्वारा खींची गई औरतों पर नियंत्रण के दायरों को एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसी बात को उजागर करता है प्रस्तुत लेख।
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बलात्कार और कानून

संवाद
by सुनीता ठाकुर
भारत में बलात्कार से जुड़े सक्रिय कानून के मौजूद होने के बावजूद उनकी स्थिति बेमानी है क्योंकि हमारे समाज द्वारा महिलाओं को कानून का सही इस्तेमाल करने की समझ, ताकत और आज़ादी नहीं दी गई है। प्रस्तुत लेख में इसी बात पर टिप्पणी की गई है।
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लड़कियां

कहानी
by मृणाल पांडे
पढ़िए मृणाल पाण्डे की लिखी यह कहानी- लड़कियां जिसके ज़रिये वे हमारे पाखंड समाज की सच्चाई को बड़ी सहजता से सामने लाती हैं। एक ऐसा समाज जहाँ एक ओर लड़कियों को देवी, कन्याकुमारी मानकर उन्हें पूजा जाता है तो दूसरी ओर लड़कों की तुलना में उन्हें निम्नतर दर्जा देकर उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
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मर्दों का इससे क्या लेना देना ?

by राहुल रॉय
फिल्म निर्माता व कार्यकर्ता राहुल रॉय इस लेख में दिल्ली में घटित निर्भया बलात्कार व हत्या काण्ड के बाद इण्डिया गेट में चल रहे विरोध प्रदर्शन के सन्दर्भ में मर्दानगी और पितृसत्ता की गहरी जड़ों के बारे में लिखते हुए कहते हैं की "मर्दानगी वह धरणात्मक आधार है जो मर्दों के लिए दंड मुक्ति को जायज़ बनाता है और व्यवहार में भी उतारता है।" आगे पढ़िए...
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मैं अपने जीवन के लिए लड़ी और जीती भी

आपबीती
by सुहेला अब्दुलाली
सुहेला भारत में जन्मी एक लेखिका व पत्रकार हैं जो फिलहाल अमेरिका में रहती हैं। सन 1980 में 17 साल की उम्र में वे एक अत्यंत हिंसक सामूहिक बलात्कार हादसे की शिकार हुईं थीं जिसके तीन साल बाद उन्होंने भारतीय पत्रिका, मानुषी में अपने अनुभव के बारे में लिखा था। प्रस्तुत है उनके उसी लेख का हिंदी अनुवाद।

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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