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नए विधायकों के लिए सबक

संवाद
by कल्पना शर्मा
इस लेख में हरियाणा के नारनौल कस्बे के उदाहरण को पेश किया गया है जहाँ पाइप के ज़रिये पानी सप्लाई की योजना होते हुए भी पानी नहीं आया और पाइप सूखे पड़े रहे। पर काग़ज़ी तौर पर बस्तीवालों को पानी मिल रहा है और वे पचास रुपये माहवार उस पानी के लिए भुगतान करते हैं जो उन्हें कभी मिलता ही नहीं है। इसका प्रभाव सबसे ज़्यादा औरतों पर पड़ता है जो अत्यंत विवेकपूर्ण तरीके से पानी के सीमित संसाधन का इस्तेमाल कर अपना गुज़ारा करती हैं। इस लेख के ज़रिये पन्द्रहवें लोकसभा चुनाव में हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले से नव-निर्वाचित विधायक श्रुति चौधरी का ध्यान इस समस्या की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया गया है।
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नक़्शे से बाहर: दिल्ली में बेदख़ली और पुनर्वास के बाद ज़िन्दगी

पुस्तक परिचय
by कल्याणी मेनन-सेन
दो साल के शोध अध्ययन पर आधारित यह पुस्तक यमुना पुशता में 'अवैध' जुग्गियों में रहने वाले परिवारों की ज़िन्दगी पर विस्थापन के प्रभावों का जायज़ा लेता है जिन्हे शहर के हाशिये पर बवाना में पुनर्वास दिया गया था। इस पुस्तक में बहुत सारे सामजिक और आर्थिक संकेतकों के प्रसंग में इकट्ठा किये गए आंकड़ों और साक्ष्यों के ज़रिए यह दर्शाया गया है कि बेदखली और पुनर्वास ने पुनर्वासित परिवारों के अधिकारों व आजीविका को कितनी ठेस पहुंचाई है और उन्हें एक ऐसी स्थायी ग़रीबी की अवस्था में धकेल दिया है जहाँ से निकल पाना अत्यंत कठिन है। पेश है इस पुस्तक के कुछ अंश...