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Living Feminisms
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सुमी

संवाद
by चैताली हालदार
पढ़िए सुमि की कहानी जो कच्ची उम्र में गरीबी के मारे बंगाल के एक छोटे से गाँव से दिल्ली महानगर में भेज दी गई ताकि परिवार के लिए दो पैसे कमा सके।
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बाल घरेलू कामगारों के लिए मध्यम वर्ग की मांग

by ज्योति सोनिया धान
प्रस्तुत लेख में बाल घरेलू कामगारों की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए सरकार द्वारा बाल मज़दूरी के खिलाफ सख्त कानून बनाने की मांग रखी गई है। साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि ज़मीनी स्तर पर योजनाओं को पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए ताकि गरीबी के कारण श्रमिक बनने से ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों को रोका जा सके।
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एक अदृश्य अर्थव्यवस्था: घरेलू कामगार

by गीता मेनन
"घरेलू कामगार हमारी अर्थव्यवस्था का एक मूक व अदृश्य आधार है।"… प्रस्तुत लेख में घरेलू काम को "काम" का दर्जा न मिलने के सन्दर्भ में समाज की पितृसत्तात्मक वास्तविकता को प्रकाशित किया गया है जहाँ घरेलू काम को एक लैंगिक नज़रिये से देखा जाता है और कमतर माना जाता है। घरेलू कामगारों के इस अहम कामगार वर्ग समूह को उनका जायज़ दर्जा व न्याय दिलाने के लिए एकजुट होकर संयुक्त प्रयास करने की ज़रुरत है।
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नियोजन एजेंसी नियंत्रण सम्बंधित मुद्दे

by नीता एन.
इस लेख में घरेलू कामगारों के नियोजन व कल्याण से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई है। यह लेख इस बात पर ज़ोर देता है कि घरेलू कामगारों के हितों को पूर्णतः सुरक्षित रखने के लिए नियोजन एजेंसियों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के साथ-साथ घरेलू कामगारों के काम के हालात को नियंत्रित करने वाले कानूनों की भी आवश्यकता है।
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हमारी बात- घरेलू कामगार: हालात, हक़ व ज़िम्मेदारी

by सुरभि टंडन मेहरोत्रा
प्रस्तुत है हम सबला के जनवरी-अप्रैल 2011 के अंक की भूमिका। इस अंक की अतिथि संपादक सुरभि टंडन मेहरोत्रा भारत के सबसे बड़े असंगठित क्षेत्र के कामगारों (घरेलू कामगारों) की स्थिति, उनके हक़, संगठन व श्रमिक के रूप में पहचान की उनकी मांग और प्रयास से जुड़े विविध मुद्दों को प्रकाशित करती हैं।
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अन्नदाता

हम सबला (अप्रैल-जून 2010)
by अमृता प्रीतम

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About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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