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नुक्क्ड़-नुक्क्ड़, आंगन-आंगन
by सुनीता ठाकुर
प्रस्तुत लेख में महिला आन्दोलन के अभियानों में नुक्कड़ नाटकों, प्रदर्शनियों, पोस्टर, पर्चे आदि का रचनात्मक प्रयोग पर चर्चा की गई है।
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कुछ खोने से कुछ पाने तक
कहानी
by सुनीता ठाकुर
प्रस्तुत लेख हमारे पूर्वजाओं जैसे लक्ष्मीबाई,अहिल्याबाई आदि का उदाहरण देते हुए जेंडर असमानता के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की प्रेरणा देता है।
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महिलाएं, समाज और मस्जिद
by बुरहानुद्दीन शकरूवाला
पिछले दिनों केरल और लखनऊ में कुछ स्थानों पर महिलाओं ने मस्जिदों में पुरुषों के साथ आकर नमाज़ अदा की। अब तक मस्जिदों में उनके प्रवेश पर पाबंदी थी इसलिए जमात में आके नमाज़ पढ़ने के इस फैसले का विरोध हुआ पर महिलाएं इस हक़ की रक्षा में अटल हैं। केरल से बुरहानुद्दीन शकरूवाला की रिपोर्ट इस प्रसंग में नया प्रकाश डालती है।
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छठा राष्ट्रीय नारी मुक्ति संघर्ष सम्मलेन
by सुहास कुमार
प्रस्तुत लेख दिसंबर 1997 में 3 दिन के लिए रांची शहर में आयोजित छठा 'राष्ट्रीय नारी मुक्ति संघर्ष सम्मलेन' की गतिविधिओं पर प्रकाश डालता है।
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हंसना, जीतना और भूल जाना
by जुही जैन
खुलकर हंसना और इस हंसी में थोड़ी देर के लिए ही सही ज़िन्दगी के दुःख दर्द से राहत पाना- इसी कोशिश में इंडियन हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन की पंद्रहवीं जयंती के समारोह पर आयोजित किया गया कमाठीपुरा में रहने वाली तमाम वेश्याओं के बीच 'हंसने की प्रतियोगिता'।
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जेंडर का बवंडर: अरे यह क्या है?
by कमला भसीन
'जेंडर' एक ऐसी सोच है जो समाज में लिंग-भेद (मर्द-औरत) का विरोध करती है और एक ऐसे समाज की कल्पना करती है जिसमें काम, गुण ज़िम्मेदारियां, व्यवहार और हुनर किसी लिंग, जाति, रंग और वर्ग के आधार पर थोपे न जाएं। आगे पढ़िए...
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