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विज्ञापनों में स्त्रियों का दुरुपयोग

by स्त्रियां और प्रचार माध्यम
आधुनिक विज्ञापन यह प्रदर्शित करते हैं कि औरतें रात-दिन अपने शरीर और चेहरे की सुंदरता बढ़ाने के बारे में सोचती रहती हैं। ये विज्ञापन 'नारीत्व' के गुणों को रमणीयता, शर्मीलापन और साज-श्रृंगार के रूप में ही परिभाषित करते हैं। क्या 'मोहक होना ही असली औरत होना है? आगे पढ़िए...
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संचार माध्यमों में औरतें

by वीणा शिवपुरी
संचार माध्यम लोगों तक लोगों की ज़ुबान में उन्हीं की समस्याओं के हल और सुझाव पहुँचाने का ताकतवर ज़रिया है इसलिए ज़रूरी है कि महिलाओं के विकास में उनका भरपूर उपयोग किया जाए। आगे पढ़िए...
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अ रेबल एंड हर कॉज़- द लाइफ एंड वर्क्स ऑफ़ रशीद जहां

पुस्तक परिचय
by जुही जैन
इस लेख में रख्शंदा जलील की लिखी उर्दू लेखिका रशीद जहां की जीवनी का परिचय प्रस्तुत है। डॉक्टर और लेखिका रशीद जहां की लिखी कहानियों में मौजूदा सामाजिक असमानताओं, धार्मिक कट्टरवाद और पितृसत्तात्मक समाज में औरतों के शोषण के प्रति आक्रोश व्याप्त था।
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असगरी बाई- सन्नाटे का सुर-पंचम

फिल्म समीक्षा
by सीमा श्रीवास्तव
प्रस्तुत है 86 वर्षीय एक मात्र ध्रुपद गायिका असगरी बाई के जीवन पर केंद्रित फिल्म 'असगरी बाई- सन्नाटे का सुर- पंचम' की समीक्षा।
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हंसा वाडेकर- रंगमंच व मराठी फिल्म अभिनेत्री

आमने- सामने
by नगमा जावेद मालिक
रंगमंच व मराठी फिल्म अभिनेत्री हंसा वाडेकर न केवल एक बेहतरीन कलाकार थीं अपितु एक कलमकार भी थीं। उनकी निजी जीवन अत्यंत संघर्षरत और नाखुश थी जिसकी व्याख्या उन्होंने अपनी आत्मकथा "मैं कहती हूँ, तुम सुनो" में किया है। श्याम बेनेगल की फिल्म "भूमिका" हंसा के जीवन पर आधारित एक प्रभावशाली कहानी है।
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अलविदा ज़ोहरा आपा

यादगार
by गौहर रज़ा
ज़ोहरा सेगल का खिलखिलाता चेहरा, उनकी चुलबुली आवाज़, उनकी प्यार भरी आँखें, उनका अनोखा व जादू भरा अंदाज़- उनकी कई खूबियों में से कुछ हैं। अपनी प्रतिभा और सादगी के ज़रिये सभी के दिलों में बस्ने वाली ज़ोहरा आपा 102 साल की उम्र में ईश्वर को प्यारी हो गईं। इस यादगार में गौहर रज़ा ज़ोहरा आपा के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हैं।

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
Development and Maintenance: Zenith Webtech

About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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