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टाबर नै मत ब्याओ जी

सबला (अप्रैल - मई 1990)
by जयपुर जिले की साथिनों ने यह गीत रचा
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साथिन रो कागद

by
"क्यों हम लड़की को ज़िंदा रहने का ही अधिकार नहीं देना चाहते? लड़की के जन्म पर क्यों दुःख मनाते हैं? क्यों लड़की पर ही सारे काम का भोझ डालकर उसका बचपन उस से छीन लेते हैं ? अपनी लड़कियों को आगे बढ़ने के समान के मौके क्यों नहीं देते? " आगे पढ़िए...
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हमारी बात

by सुहास कुमार
" एक सवाल हमारे मन में बार- बार उठता हैं - क्या हम अपने स्तर पर बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते हैं? क्या हम उन्हें वह सब दे रहे हैं जो उनको मिलना चाहिए ? पढ़ाई- लिखाई और स्वास्थ्य रक्षा को ही ले । हमने पाया कि बहुत से बच्चों , विशेषकर लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता । न ही बीमारियों से बचने के लिए टीके लगवाने पर ध्यान दिया जाता हैं । ऐसा क्यों? " आगे पढ़िए...
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अनपढ़ की पीड़ा

by राज्य संदभॅ केंद्र
" बहुतो के मन में साक्षर होने की अभिलाषा हैं, लेकिन " भूखे भजन न होए गोपाला ", पर पहले उन्हें रोज़ी - रोटी जुटाने के लिए काम देना होगा जब तक सरकार आथिक परिस्थिति में सुधार लाने की साथ - साथ कोशिश नहीं करती तब तक साक्षरता की योजनाएं कैसे सफल हो पाएंगी ? ... पुराणी धारण कि पढ़- लिखा कर क्या होगा ख़त्म करनी होगी । ऐसे भी लोग हैं जो दिल से पढ़- लिख लेना चाहते हैं । उनके रास्ते में आ रही बाधाओं को दूर करना होगा । " आगे पढ़िए...
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कठपुतली का करतब

by साभार- संचार के माध्यम
" हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने कठपुतली का तमाशा न देखा हो । गा बजा कर, नाचकर , मज़ेदार बातो से कठपुतलिया हमारा मनोरजन करती हैं । लोगों का ध्यान खींचने के लिए , खेल में रूचि बनाए रखने की लिए , बात को रुचिकर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए कठपुतली संचार का एक ताकतवर माध्यम हैं । " आगे पढ़िए...
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बिटिया की कहानी

by
" जननाट्य मंच दिल्ली ने औरत नाटक "औरत" के जीवन के खास-खास पहलुअो को लेखर बनाया हैं । यहां हम उस के बचपन की एक झांकी दे रहे हैं । " आगे पढ़िए ...

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Concept: Jagori | Content: Amrita Nandy | Design: Avinash Kuduvalli
Development and Maintenance: Zenith Webtech

About Living Feminisms

Living Feminisms is an attempt to share archives preserved by Jagori, a New Delhi-based feminist organisation from the eighties. It offers subjective accounts by our curators as well as access to publications, songs, pamphlets, posters, photographs, poems etc. Together, they reflect the diverse spectrum that is the autonomous Indian women’s movement, its struggles, solidarities and differences, laughter, anger, carefree moments, campaigns, love, loss, work and home.

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