बस अब बहुत हुआ

आमने-सामने
by अमृता नंदी जोशी / Ref अमृता नंदी जोशी
प्रस्तुत लेख में यौन उत्पीड़न पर 'चुप्पी' तोड़ने की ज़रुरत पर ज़ोर देते हुए लेखिका हमारे सांस्कृतिक परिवेश, जहां यौन हिंसा जैसे घोर अपराधों को 'छेड़छाड़' कहकर टालने का रवैया सामान्य है, में कुछ अतिवादी मूलभूत परिवर्तन करने की बात करती हैं। साथ ही वे इस मुहिम में पुरुषों की भागीदारी व भूमिका के महत्त्व पर भी प्रकाश डालती हैं।
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Jagori
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